Thursday, April 24, 2008

हमारी डेढ साल की बेटी टीचर बन गई।

आज की पोस्ट मैं अपनी डेढ साल की बेटी की वजह से लिख रहा हूँ। जिसने हमें आज एक नया पाठ सिखाया।
कल ही की तो बात है मेरे को खाँसी आई तो मैं खाँसने लगा। तो झट से ही मेरी बेटी मुझे इशारों में समझाने लगी, एक हाथ मुँह पर रख खाँसने की एक्टींग कर बताने लगी कि ऐसे खाँसते है। यह बात कुछ दिनो पहले जब इसको खाँसी आई थी तो उसकी मम्मी ने समझाई थी। कि बेटा जब भी खाँसी आऐ तो मुँह पर हाथ रख कर खाँसते है। वो हमें बताती है चप्पल हमेशा पहनो, मैं अगर नंगे पैर हूँ तो मेरी चप्पल उठा लाऐगी और जब तक मैं उन्हें पहन ना लूँ तब तक इशारो से बताती रहेगी कि इन्हें पहनो। वो जो भी चीज जहाँ से उठाती है वहीं रख के आती है। ये सब हमने ही उसे बताया सिखाया है। पर हम दोनों ही उसको सिखाई हुई बातों पर अमल नही करते है।तब ही गाँधी जी याद आ गये। कहीं किताब मे पढा था कि एक बार एक परिवार गाँधी जी के पास आया और बोला कि हमारे बेटा ज्यादा ही गुड खाता है आप जरा इसे मना कर दे ये आपकी बात नही टालेगा। तो गाँधी जी बोले कि कल आना। तो वह परिवार अगले ही दिन फिर बेटे को लेकर पहुँचे, तो गाँधी जी ने उनके बेटे को कहा कि बेटा ज्यादा गुड नहीं खाना चाहिए। परिवार परेशान होकर बोला कि गाँधी जी ये तो आप कल भी कह सकते थे। तो फिर आपने हमें आज क्यों बुलाया। गाँधी जी बोले कि कल तक तो मैं भी ज्यादा गुड खाता था तो कैसे मना कर सकता था। पर आज से मैने गुड खाना छोड दिया है। यह एक बडी अजीब बात है। हम(चाहे वो नेता हो, पत्रकार हो, नोकरशाह हो, या फिर कोई अन्य) अपने चारों तरफ हर किसी को ये समझाते रहते है कि ये करो, ये सही है, ये ना करो ये गलत है। पर खुद उस पर कितना अमल करते यह हमने कभी नही सोचा। अगर हम अपने कहे पर ही अमल करने लगे तो यह दुनिया कितनी सुन्दर हो जाये। हमारी बेटी मोटी- बडी किताबों को बिना पढे ही हमारी टीचर बन गई है।

Thursday, April 17, 2008

अधिकार और कर्तव्य

पढो और सोचो
आज कल चारो तरफ आदमी के अधिकारो की बात हो रही चाहे वह टी.वी हो, पेपर हो, रेडियो हो ओर चाहे ब्लोग। हम अपने अधिकारो की बात बडी शान से करते है। कभी मैने किसी को अपने कर्तव्यों की बात करते नही सुना। मै यँहा दोनो की बात कर रहा हूँ। पहले कर्तव्य को पढे, फिर अधिकारो को पढे। और फिर दिल पर हाथ रख कर सोचे बस। ज्यादा गहराई में जाना सही नही होगा। बस सोचो। और अपनी आत्मा से पूछो । कि हमने कौन सा कर्तव्य निभाया है। बस।
संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 51क में दस मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है.
1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करें और उसके आदर्शो, संस्थाओ, राष्ट्र्ध्वज और राष्ट्गान का आदर करे।
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्टीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को ह्र्दय में संजोए रखे और उनका पालन करें।
3. भारत की प्रभुता एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखे।
4. देश की रक्षा करें।
5. भारत के सभी लोगों में समरता और समान भ्रात्त्तव की भावना का निर्माण करे।
6. हमारी सामाजिक संस्कति की गौरवशाली परम्परा का मह्त्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
7. पयार्वरण की रक्षा और उसका संवर्धन करें।
8 वैज्ञानिक सोच और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करें।
9. सार्वजनिक सम्पति को सुरक्षित रखे।
10. व्यकिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उतर्कष की ओर बढ्ने का सतत प्रयास करें।

छ: मौलिक अधिकार
1. समानता का अधिकार
2. स्वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के विरुद अधिकार
4.धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
5. संस्क्रति तथा शिक्षा का अधिकार
6. सांविधानिक उपचारो का अधिकार

Friday, April 4, 2008

चेहरो पर मुखौटे

मुखौटे 

पत्थरो के इस जहाँ में इंसानियत को ढूढता हूँ
मैं ना जाने क्यूँ भगवान को ढूढता हूँ।

टेढे रास्ते चलोगे सब साथ हो लेंगे
सीधे रास्ते चलोगे सब साथ छोड़ चलेंगे
ये दुनिया वाले चेहरो पर मुखौटे लगाते मिलेगे।

भावुक आदमी मिला तो इस्तेमाल कर लेंगे
चालाक आदमी मिला तो सलाम कर देंगे
ये दुनिया वाले चेहरो पर मुखौटे लगाते मिलेगे।

जरुरत पड़ने पर माँ-बाप का हाथ थाम लेंगे
आया जब हाथो में जोश, माँ-बाप के साये से भाग लेंगे
ये दुनिया वाले चेहरो पर मुखौटे लगाते मिलेगे।

अच्छे का दम भरते लोग गाँधी, भगत सिंह की जय-जय कार करते मिलेगे
पर अपने बच्चो में गाँधी, भगत सिंह के विचार पैदा नहीं करेंगे
ये दुनिया वाले चेहरो पर मुखौटे लगाते मिलेगे।

किसी के जीते जी उसके दुख में शामिल ना होंगे
पर उसके मृत शरीर के पास दिखावटी अफसोस जताते मिलेगे
ये दुनिया वाले चेहरो पर मुखौटे लगाते मिलेगे।

भगवान भक्त धार्मिक जगहों पर ईश्वर को पूजते फिरेंगे
देखना ये सब तरफ ईश्वर के बनाये बंदे को कष्ट देते मिलेगे
ये दुनिया वाले चेहरो पर मुखौटे लगाते मिलेगे।

पत्थरो के इस जहाँ में इंसानियत को ढूढता हूँ
मैं ना जाने क्यूँ भगवान को ढूढता हूँ।

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