Friday, March 28, 2008

नानी का गाँव


नानी का गाँव


दोडते भागते इस जीवन में, जब भी खाली वक्त आता है
ना जाने क्यों नानी तेरे गाँव आने को जी चाहता है?
समय चुरा हरे भरे खेतो की मेह्डो पर चल, दूर कहीं निकल जाने को जी चाहता है
ना जाने क्यों नानी तेरा गाँव याद आता है?
नानी तेरे हाथ के रात के बने मोटे रोट सुबह दही के साथ खाने को जी चाहता है
ना जाने क्यों नानी तेरा गाँव याद आता है?
वो अपने नीम के पेड पर बैठे मोर, तीतर की आवाज सुने को जी चाहता है
ना जाने क्यों नानी तेरा गाँव याद आता है?
एक बार फिर से बैल गाडी को चला अपने खेतो पर जाने को जी चाहता है
ना जाने क्यों नानी तेरा गाँव याद आता है?
धुँघ्ररुओ की ताल पर बैलो को जोहड (तालाब) पर पानी पिलाने को जी चाहता है
ना जाने क्यों नानी तेरा गाँव याद आता है?
बच्चा बन, सजी-धजी,छ्म-छ्म करती मामी के साथ अपने कुँऐ से पानी लाने को जी चाहता है
ना जाने क्यों नानी तेरा गाँव याद आता है?
नाना से लुक छीप, फिर से समाध पर पहलवानो की कुश्ती देखने जाने को जी चाहता है
ना जाने क्यों नानी तेरा गाँव याद आता है?
हाथ में बाल्टी और रस्सी लेकर कुँऐ पर खूब मल मल कर नहाने को जी चाहता है
ना जाने क्यों नानी तेरा गाँव याद आता है?
रात को इकटठे बैठ नानी,मामी तुम्हारी भाषा में " कठे जा रा सह, यू जातक किसका सह,"
जैसी ढेरो बाते करने को जी चाहता है
ना जाने क्यों नानी तेरा गाँव याद आता है?
दोडते भागते इस जीवन में, जब भी खाली वक्त आता है
ना जाने क्यों नानी तेरे गाँव आने को जी चाहता है?
नोट-यह फोटो earthalbum से है .

6 comments:

mamta said...

अरे तो नानी के गाँव चले जाइए।

रवीन्द्र प्रभात said...

अत्यन्त सुंदर अभिव्यक्ति , बधाईयाँ !

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!! बहुत खूब!!

राजीव तनेजा said...

असल में वर्तमान में अपना बचपन सहेजने को जी चाहता है ...

सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई....

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

khub.........

सुजाता said...

hmm !
नानी का गाँव कैसा होता है ?
हमारा भी मन होता है , पर नानी का कोई गाँव नही है ।
यहाँ भी आइयेगा sandoftheeye.blogspot.com

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