Sunday, March 16, 2008

क्या स्त्री का जीवन एक खिलौना है?

स्त्री जीवन
एक दिन घर में कोई नही था
एक मैं और एक मेरी तन्हाई थी
गर्मियों की इस शाम में, फर्श की ठडक मुझे भाई थी
पता नही यह शाम कितने सालो के बाद आई थी
भूत और भविष्य की रस्सी पर, वर्तमान को तख्ती बना मैं झूला झूलने लगी थी
ओर इसी आजादी के बीच जीवन का गीत गाने लगी थी
कि जीवन क्या हैं तू ही बता ऐ हवा
वो बोली कि जीवन एक संघर्ष हैं
दिल तडफ उठा, झठ से बोल उठा.
जीवन एक खिलौना है
जब जिसको मौका मिला तब उसी ने खेला है.
बचपन में घरवालो ने तेरी इच्छाऔ से खेला है
जब बडी हुई स्कूल कालेज गई
तब दोस्तो ने तेरे जज्बातों से खेला है
जब माँ-बाप ने अपने सिर से तेरा बोझ उतारा
तब तेरे पति ने तेरे शरीर से खेला है
जब तू माँ बनी
तब तेरी ससुराल ने तेरी कोख से खेला है
जब खर्च ना चला एक कमाई से, निकली तू चारदिवारी से
तब लोगों तेरे हालातों से खेला है
जब आज तू बूढी हो चली है
तब तेरे बच्चो ने तेरे बुढापे से खेला है
जब तू इस दुनिया से जाऐगी
तब भगवान भी तेरी मौत से खेलेगा
तेरा जीवन एक खिलौना है
जब जिसको मौका मिला तब उसी ने खेला है

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है।अच्छी लगी।

राजीव तनेजा said...

सच्चाई से रुबरू कराती प्रभावशाली रचना....बधाई

राजीव तनेजा said...

सच्चाई से रुबरू कराती प्रभावशाली रचना....बधाई

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