Thursday, February 28, 2008

सपने

सपने
सपने जो कभी न हुए अपने
ख्वाब बेबस ख्वाब
जागती आंखो के ख्वाब
नही अलग सपनों से मगर
लगता है न होते ये अगर
कटता कैसे जीवन का सफर
शायद मेरे यही है हमसफ़र
हमसफ़र बेबस हमसफ़र
कभी जिन्हें देखने से लगता है डर
कहीं इसने भी छोड़ा साथ अगर
जिएंगे कैसे हम ता उम्र भर
क्योंकि दिया इसने ही सहारा मुझे
छोड़ा जब भी तन्हाई ने मुझे

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

राजीव तनेजा said...

बहुत बढिया.....सुन्दर..सरल शब्द लिए कविता...

लिखते रहें...

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